Memories...

उन दिनों जब कि तुम थे यहाँ
जिंदगी जागी-जागी सी थी
सारे मौसम बड़े मेहरबान दोस्त थे
रास्ते...दावतनामे थे जो मंजिलों ने लिखे थे जमीन पर हमारे लिए
पेड़...बाहें पसारे खड़े थे हमें छाव की shawl पहनाने के वास्ते
शाम को सब सितारे बहुत मुस्कुराते थे जब देखते थे हमें
आती जाती हवाएं कोई गीत खुशबु का गाती हुई छेडती थीं...गुजर जाती थीं
आसमां पिघले नीलम का एक तालाब था
जिसमें हर रात एक चाँद का फूल खिलता था और पिघले नीलम में बहता हुआ
वो हमारे दिलों के किनारों को छू लेता था
उन दिनों जब के तुम थे यहाँ...


अश्कों में जैसे धुल गए सब मुस्कुराते रंग,
रस्ते में थक से सो गयी मासूम सी उमंग,
दिल है की फिर भी ख्वाब सजाने का शौक है,
पत्थर पे भी गुलाब उगने का शौक है,
बरसों से यूँ तो एक अमावस की रात है,
अब इसको हौसला कहूं या जिद की बात है,
दिल कहता है की अँधेरे में भी रौशनी तो है,
माना की राख हो गए उम्मीद के अलाव,
इस राख में भी आग कहीं पर दबी तोह है...


आपकी याद कैसे आएगी, आप ये क्यूँ समझ न पाते है,
याद तोह सिर्फ उनकी आती है, हम कभी जिनको भूल जाते हैं ।

-- Javed Akhtar

Rightly putting my feeling in his poem

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