A poem on time

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके हैं पर अब उन्हें दफ़नाने का वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल में हैं पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी पर सोने का भी वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा पर रोने का भी वक़्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े की थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसास की क्या कद्र करें जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी इस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को जीने के लिए भी वक़्त नहीं
-- Unknown

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